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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 39 


"साहित्य संगम" कार्यक्रम समाप्त हो गया था । सब लोग एक एक करके चले गये । शुक्राचार्य भी जाने को उद्यत हुए तो उन्होंने देवयानी की ओर देखा । देवयानी शून्य में ताक रही थी और गहरे विचारों में निमग्न थी । शुक्राचार्य ने उसे धीरे से पुकारा 
"देव" 
देवयानी ने कुछ सुना ही नहीं था इसलिए वह एकटक शून्य में ही ताकती रही । शुक्राचार्य ने उसे फिर से पुकारा 
"देवयानी" 

देवयानी तो कच के खयालों में खो गई थी इसलिए उसे कुछ भी सुनाई नहीं दिया था । पर इस बार देवयानी ने चौंककर शुक्राचार्य की ओर देखा । शुक्राचार्य को ऐसा लगा जैसे वह किसी गहरे कुंए से निकल कर आई हो । 
"कहां थीं तुम देव ? कार्यक्रम कब का समाप्त हो चुका है , आश्रम नहीं चलना है क्या" ? शुक्राचार्य ने देवयानी को टोकते हुए कहा "क्या कार्यक्रम में खो गई थीं" ? 

वह वास्तव में विचारों के गहरे कुंए में डूबी हुई थी । शुक्राचार्य ने उसे और डूबने से बचा लिया था । देवयानी को अपने भावों को छुपाने का मौका मिल गया था इसलिए वह  अधरों पर बरबस मुस्कान लाती हुई बोली 
"तात ! कार्यक्रम था ही इतना सुन्दर कि मैं उसमें डूब गई थी । इतने सुन्दर कार्यक्रम के आयोजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई पिता श्री" । 

देवयानी ने शुक्राचार्य के सम्मुख नतमस्तक होकर उन्हें बधाई दी । कार्यक्रम की प्रशंसा सुनकर शुक्राचार्य प्रसन्न हो गये । यह मानव स्वभाव है कि जब मनुष्य कोई कार्य करता है और उस कार्य की लोग प्रशंसा करते हैं तो इससे उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है । देवयानी के द्वारा प्रशंसा करने से शुक्राचार्य जैसे महान ॠषि को भी आनंद का अनुभव हुआ । आनंद से गदगद होते हुए शुक्राचार्य बोले 
"जगत के समस्त श्रेष्ठ कवि, नाटककार, लेखक और साहित्यकारों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था । ऐसे महान साहित्यकारों को एक स्थान पर एकत्रित करना अति दुर्लभ कृत्य है देवयानी । यह तुम्हारा सौभाग्य है कि इतनी अल्पायु में ही इतने सारे विद्वानों को देखने का सौभाग्य तुम्हें प्राप्त हो गया । सब एक से बढकर एक विद्वान थे । साहित्य, कला , संगीत से हमारे हृदय के तार झंकृत होते हैं । जैसे सावन में रिमझिम बरसती वर्षा णसे मन प्रसन्न हो जाता है । सुगंधित पुष्पों का स्पर्श पाकर मन उल्लासित हो जाता है । झरने के नीचे बैठकर पानी के प्रवाह को सिर पर महसूस करने से ऐसा लगता है कि हमें "प्राण" मिल रहे हैं । इसी प्रकार साहित्य पढने और लिखने से हमारे मन की संवेदनाऐं जागृत हो जाती हैं । संगीत से मन झूमने लगता है और चित्रकला से हम प्रकृति के साथ साक्षात्कार करते हैं । इस विशाल आयोजन से सब लोग एक बार पुन: अपनी आत्मा से जुड़ पाये , यही गर्व का विषय है । अच्छा , अब बहुत विलंब हो चुका है । चलो, अपने आश्रम चलते हैं" । शुक्राचार्य देवयानी का हाथ पकड़कर बोले । 
"तात , अब मैं बालिका नहीं रही , षोडशी हो गई हूं" । देवयानी ने उपालंभ देते हुए और शुक्राचार्य से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा । 
"अरे हां, मैं तो भूल ही जाता हूं कि तुम अब बालिका नहीं रही हो अपितु एक तरुणी बन गई हो । लेकिन मैं भी क्या करूं , एक पिता को तो अपनी संतान सदैव छोटी बच्ची ही दिखाई देती है । अब चलो, चलते हैं" । शुक्राचार्य और देवयानी सभागार से बाहर निकल गये । 

दोनों जने सभागार के बाहर बने विशाल दालान में आ गये । वे लोग दालान से गुजर ही रहे थे कि एक राज सेवक शुक्राचार्य के पास आया और करबद्ध होकर निवेदन करने लगा 
"गुरुदेव की जय हो ! महाराज आपको सभागार में स्मरण कर रहे हैं" 
"क्या अभी" ? शुक्राचार्य ने पूछा 
"जी गुरुदेव" । 

शुक्राचार्य ने एक क्षण सोचा और देवयानी से कहा 
"मुझे महाराज के पास जाना होगा देव , तुम ऐसा करो मेरे किसी शिष्य के साथ चली जाओ" । इतना कहकर शुक्राचार्य ने अपने चारो ओर दृष्टि घुमाई तो उन्हें सामने ही कच दिखाई दे गया । उन्होंने कच को आवाज देकर अपने समीप बुलाया और कहा 
"वत्स कच, देवयानी को अपनी कुटिया में छोड़ आओ" । और शुक्राचार्य उस सेवक के साथ प्रस्थान कर गये । 

देवयानी को बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि इस प्रकार यकायक कच से भेंट हो जाएगी और कुछ पलों का सानिध्य भी मिल जाएगा । कच का सानिध्य पाकर उसका मन रोमांचितहो गया । "वह तो घृणा करती है कच से फिर उसका मन क्यों आनंदित हो रहा है उसका सामीप्य प्राप्त करके" ? उसके मन में विचार आया । पर इस प्रश्न का उत्तर उसके पास नहीं था । इतने में कच ने कहा 
"यदि आपकी अनुमति हो तो अब हम प्रस्थान करें, गुरू पुत्री" ? 
"गुरू पुत्री ? ये कैसा संबोधन है" ? इस संबोधन से चौंक पड़ी थी देवयानी । 

देवयानी के मुंह से अनायास निकल गया । देवयानी की बात सुनकर कच भी मुस्कुरा दिया । दो अपरिचित व्यक्ति जब प्रथम बार मिलते हैं तब वे असहजता महसूस करते हैं । एक दूसरे से संकोच करते हैं । किन्तु जब उनमें वार्तालाप होना प्रारंभ हो जाता है तो वे सहज हो जाते हैं । कच ने वार्तालाप प्रारंभ कर मौन रूपी दीवार तोड़ दी थी और एक दूसरे से परिचित होने के लिए एक सेतु का निर्माण कर लिया था । 

"और क्या संबोधन दूं आपको ? आप मेरे गुरू शुक्राचार्य की पुत्री हैं इसलिए यह संबोधन उचित ही है । चूंकि आप गुरू पुत्री है इस नाते आप मेरी भगिनी हैं । मैं आपको "भगिनी" कह सकता हूं क्या" ? कच ने देवयानी की ओर देखकर कहा  । 

अपने लिएकच के मुंह से "भगिनी" संबंध का उच्चारण सुनकर देवयानी को बड़ा विचित्र सा लगा । उसे यह उच्चारण बिल्कुल पसंद नहीं आया । क्यों पसंद नहीं आया, इसका उसे कुछ भी पता नहीं था ।  इसलिए वह कहने लगी । 
"मैं आपसे आयु में छोटी हूं इसलिए आप मेरा नाम ले सकते हैं" ? देवयानी ने सोच विचार करने के बाद कहा । 
"नाम लेना क्या उचित होगा" ? कच ने शंका प्रकट करते हुए कहा । 
"क्यों नहीं ? आप मुझे देवयानी कह सकते हैं" । देवयानी समझ नहीं पा रही थी कि वह कच से क्या संबोधन चाहती है ? उसके मन में द्वंद्व चल रहा था । एक मन तो कच से घृणा कर रहा था लेकिन दूसरा मन कच के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित लग रहा था । जिस तरह दो पाटों के मध्य "पिसाई" होती है वैसी ही स्थिति इस समय देवयानी की हो रही थी । 
"ठीक है, आगे से मैं आपको देवयानी ही कहकर बुलाऊंगा । पर, एक निवेदन है कि आप मेरी कुटिया में होकर चलें तो मेरी कुटिया आपके चरण रज प्राप्त कर धन्य हो जाएगी" । कच ने चलते चलते कहा । 
"क्यों, क्या करोगे मुझे कुटिया में ले जाकर" ? देवयानी ने प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए कहा । उसका का प्रश्न उचित ही था । एक अपरिचित महिला को अपनी कुटिया में क्यों ले जाना चाहता है कच ? 
"मैं देवलोक से आपके लिए कुछ उपहार लेकर आया हूं जिसे मैं आपको देना चाहता हूं" । 

कच के इन शब्दों ने देवयानी पर चमत्कारिक कार्य किया । उसके मन में उत्सुकता जागृत हो गई कि कच उसके लिए क्या उपहार लेकर आया है ? देवयानी ने अपनी उत्सुकता जताते हुए पूछ ही लिया 
"देवलोक से क्या लाए हैं मेरे लिए " ? देवयानी की नजरें उत्सुकता से फैल गई  । 
"वो मैं अभी बता नहीं सकता हूं , जब मैं भेंट करूं तब देख लेना । यदि अनुमति हो देवयानी तो मेरी कुटिया पर चलें" ? 

वैसे तो देवयानी कच की कुटिया पर जाना नहीं चाहती थी किन्तु "देवलोक से लाए गये उपहार" को देखने के लोभ के कारण वह कच की कुटिया पर जाने को उद्यत हो गई । दोनों जने कच की कुटिया पर आ गये । कच अपनी कुटिया के अंदर गया और देवयानी बाहर ही खड़ी रही । 

श्री हरि 
11.7.2023 



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8 Comments

Gunjan Kamal

14-Jul-2023 12:25 AM

👏👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:34 AM

🙏🙏🙏

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Sushi saxena

12-Jul-2023 11:05 PM

Nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:34 AM

🙏🙏🙏

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Varsha_Upadhyay

12-Jul-2023 08:50 PM

शानदार

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Jul-2023 10:34 AM

🙏🙏🙏

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